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श्रीनगर गढ़वाल।

गर्मी बढ़ते ही अब मैदानी इलाकों के साथ पहाड़ी क्षेत्रों में भी पेयजल संकट गहराने लगा है. ग्रामीणों को पानी के लिए कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है. बूंद-बूंद पानी के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों पर लोगों की कतारें लग रही है. यहां एक बाल्टी पानी के लिए ग्रामीणों को घंटों इतजार करना पड़ रहा है. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कई क्षेत्रों में पानी की किल्लत होने के चलते ग्रामीणों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

गांव, घरों में नल तो लगे हुए हैं. लेकिन उनमें जल नहीं है. ऐसे में ग्रामीण बाल्टी, केन के सहारे पानी एकत्र कर रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर जल संस्थान टैंकर का सहारा लेकर पेयजल आपूर्ति करने में जुटा हुआ है.

साल दर साल गहरा रहा पेयजल संकट
डिहाट गांव की सुमित्रा देवी बताती हैं कि उनकी शादी को 21 साल हो चुके हैं. जब से वह यहां आईं है तब से ही पेयजल की समस्या बनी हुई है. आगे उन्होंने बताया कि अब यह समस्या विकराल रूप ले रही है. प्राकृतिक जल स्रोत भी सूखने की कगार पर हैं. उनसे भी उस मात्रा में पानी नहीं आ रहा जैसे पहले आता था. ग्रामीण रविंद्र सिंह कहते हैं कि गांव में जल जीवन मिशन के तहत नल तो लग चुके हैं, लेकिन अभी तक उनमें सुचारू रूप से पेयजल आपूर्ति नहीं हो पा रही है. जिले के कल्जीखाल, एकेश्वर, सबदरखाल, घुडदौडी समेत श्रीनगर गढ़वाल के कई क्षेत्रो में पेयजल किल्लत छाई हुई है. इससे ग्रामीणों को बूंद-बूंद पानी के लिए अब आस पास के जल स्रोतों पर अब पूरी तरह से निर्भर होना पड रहा है

पेयजल योजना की पाइप लाइन क्षतिग्रस्त
जल संस्थान पौड़ी की पेयजल पंपिंग योजना में पेयजल सप्लाई घट जाने से लोगों की दिक्कते बढ गई हैं. पौड़ी-श्रीनगर पेयजल पंपिंग योजना की पुरानी पाइपलाइन जगह-जगह से क्षतिग्रस्त है. इससे हजारों लीटर पानी बर्बाद होकर बह रहा है. हालांकि, विभाग मौसम के भरोसे बैठा हुआ है. जल संस्थान पौड़ी के अधिशासी अभियंता शिव कुमार राय ने बताया कि इस साल गर्मी बढ़ने के साथ-साथ बारिश भी हो रही है, जिससे थोड़ी राहत मिली है.

टैंकरों के सहारे बुझेगी प्यास!
पानी की समस्या को लेकर विभाग द्वारा तैयारियां की गई है. जिन क्षेत्रों में पेयजल की दिक्कत होती है, वहां टैंकरों के माध्यम से पेयजल आपूर्ति की जा रही है. वर्तमान समय में चार टैंकर जल संस्थान के पास हैं. अन्य टैंकरों के लिए निविदा जारी कर दी गई है. कुछ दिनों में टेंकरों की भी संख्या बढ़ जाएगी. जिन क्षेत्रों में अधिकांश जल संकट गहरा रहा है, उनका आकलन कर वैकल्पिक व्यवस्था तैयार की जाएगी.